साईट में खोजें

६८१ ॥ श्री अच्छन मियां तेली जी ॥ (२)

बजती दोनो हाथ हथेली।

सतगुरु करि सुमिरन बिधि जानै सो इस मार्ग में पेली।

ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि कर्म शुभाशुभ बेली।

अनहद सुनै पियै घट अमृत सुर मुनि के संग खेली।

सिया राम प्रिय श्याम रमा हरि शिव गिरिजा अलबेली।५।

हर दम सन्मुख दर्शन देवैं माया बन गई चेली।

निर्भय औ निर्बैर रहै जरा कौन सकै तब ढेली।

राम श्याम के सखा मनोहर सँग में लिये सहेली।

बिबिधि भांति के हार सुगंधित गले में देवै मेली।

तन मन मस्त बरनि किमि पावै आनन्द लेइ सकेली।१०।

जो जानै सोई सुख मानै है यह कठिन पहेली।

गूंगे को जैसे दे दीजै खावै गुड़ की भेली।

स्वाद बताय सकै नहिं नेकौ सूरति भई अकेली।

अन्त त्याग तन निजपुर बैठै कहता अच्छन तेली।१४।