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६८२ ॥ श्री फुरसत शाह जी ॥

    (मुकाम रसूलाबाद)

 

पद:-

खजाना नाम का भक्तों कमालो जिसका जी चाहे।

जानि मारग को सतगुरु से गिना लो जिसका जी चाहे।

गया धन चोरों से अपना छिना लो जिसका जी चाहे।

दीनता शान्ति का बीड़ा चबालो जिसका जी चाहे।

जियत ही गर्भ के रिन को चुकालो जिसका जी चाहे।५।

 

निज को निर्बैर औ निर्भय बना लो जिसका जी चाहे।

बिधाता के लिखे अक्षर कटा लो जिसका जी चाहे।

ध्यान धुनि नूर औ लय में समालो जिसका जी चाहे।

साज अनहद को सुन अमृत को पा लो जिसका जी चाहे।

देव मुनि संग कर बैठक बतला लो जिसका जी चाहे।१०।

 

गान औ कीर्तन सब से करा लो जिसका जी चाहे।

ताल दै दोनों हाथों पर कुदा लो जिसका जी चाहे।

प्रेम में मस्त लखि आँसू बहा लो जिसका जी चाहे।

नागिनी को जगा चक्कर चला लो जिसका जी चाहे।

कमल सातों उलटि सुन्दर खिला लो जिसका जी चाहे।१५।

 

छटा सिया राम की सन्मुख में छा लो जिसका जी चाहे।

काल औ मृत्यु को गह कर रुला लो जिसका जी चाहे।

लगा थप्पड़ उन्हें नीचे दबा लो जिसका जी चाहे।

तब तो दुनियां के जीवों को सम्हालो जिसका जी चाहे।

कहैं फुरसत बचन सांचे गुना लो जिसका जी चाहे।२०।