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६७१ ॥ श्री करामत शाह जी ॥


पद:-

सरिता में जिमि मीन है वैसे जग में दीन।

बिन जाने जावैं गटकि रहते सदा मलीन।१।

बिन मुरशिद दोजख पड़ैं छूटैं नहिं गुण तीन।

कहैं करामत शाह भजि खोदा को लीजै चीन्ह।२।


गज़ल:-

क्या सानमान का है चसका मज़हब को मज़हब खाय रहे।

त्यागे सब बैन बुज़ुर्गों के बस मन मानी खुद गाय रहे।

दस झूँठी सांची एक कहैं ते जग हुशियार कहाय रहे।

पढ़ि सुनि के कोरा ज्ञान कथैं मुरशिद बनि पाँय पुजाय रहे।

धन ठगने हित चेला करते क्या कान में मंत्र बताय रहे।५।

पत्थर की नाव बने बैठे औरों को संग डुबाय रहे।

माया के चक्कर में परि के अपना परिवार बढ़ाय रहे।

तन छोड़ि पड़ैं जब दोज़ख में सब के सब हाय मचाय रहे।

झूँठे मुरशिद चेला झूँठे कहि मारैं जम दुख पाय रहे।

अब ही तो ख्याल नहीं करते धोखे में उमिरि बिताय रहे।१०।

मुरशिद करि जियतै लखि लीजै घट ही में सुर मुनि छाय रहे।

असनान करो सब तीर्थ भरे अनहद धुनि मधुर सुनाय रहे।

धुनि ध्यान प्रकाश समाधी हो सन्मुख सिय राम दिखाय रहे।

सब में हैं रमें नहिं भेद कोई सब को जल अन्न कराय रहे।

नागिन षट चक्कर ठीक होंय सातौं क्या कमल फुलाय रहे।१५।

अजपा की जाप को जिन जाना सुखमन परि मौज उड़ाय रहे।

नहिं जीभ हिलै कर माल नहीं बस शब्द पै सूरति लाय रहे।

जब नाम खुला तब क्या कहना अपनै अपनै को ध्याय रहे।

तुम को अब कुछ नहिं है करना आपै को आप रिझाय रहे।

तन छोड़ि वतन को हो रुख़सत जहँ अगणित संत दिखाय रहे।२०।

सब श्याम रूप औ चारि भुजा तन भूषन बसन सुहाय रहे।

अनइच्छित बोलि नहीं सकते तहँ याँनन बैठक पाय रहे।

छबि यानन की को बरनि सकै क्या लहर लहर लहराय रहे।

पृथ्वी मणियों की भाँति भाँति क्या वृक्ष बिचित्र दिखाय रहे।

हैं रंग रंग के फूल खिले तहँ मन्द सुगंधि उड़ाय रहे।२५।

अंतर्गत प्रभु के महरानी लखि कोटिन मदन लजाय रहे।

ऊँचा सिंहासन है सब से पितु मातु उसी पर छाय रहे।

कहते हैं करामत शाह सुनो सब के हित हम समुझाय रहे।२८।


शेर:-

अभिमान जिस बशर के तन से घट नहीं सकता।

वह राम ब्रह्म के करीब अँट नहीं सकता।१।

जैसे कि शालिग राम हों पय फट नहीं सकता।

वैसे ही सच्चा भक्त कभी हट नहीं सकता।२।

कहता है करामत शाह करामात नाम की।

बेकार सिद्धियाँ हैं और कौन काम की।३।

देंगी फँसाय जग में जाने न दें उधर।

कहते करामत शाह बस आशा लगी इधर।४।