६६५ ॥ श्री मोहाना माई जी ॥
पद:-
झूठे ओरहन लातीं हमारे गृह आतीं।
काको बरजैं हरि मेरो बारो तुम सब हौ मदमाती। हमारे गृह आतीं।
अब ही हमरे कुच नित पीवत गिरी न दूध की दाँती। हमारे गृह आतीं।
तुम सब अपने पतिन के सङ्ग में काहे नहिं अठिलातीं। हमारे गृह आतीं।
नेकौ लाज नहीं तुम सब के और न बात सोहाती। हमारे गृह आतीं।५।
चाल चलन तुम सब का बिगड़ो कौन अन्न हो खाती। हमारे गृह आतीं।
रूकत ज़बान नहीं बोलत में जिमि बकरी चरै पाती। हमारे गृह आतीं।
इन बातन का कहां ठिकाना अंत में होइ है तांती। हमारे गृह आतीं।
निज निज कुल की कानि छोड़ि क्यों पाप कि बांधौ गांती। हमारे गृह आतीं।
जैसे दिया में तेल नहीं है जलिहै केहि बिधि बाती। हमारे गृह आतीं।१०।
हाय दई ओरहनि नित सुनि सुनि बज्र भई यह छाती। हमारे गृह आतीं।
हरि तो इनके ऐस लगत हैं जैसे पोता नाती। हमारे गृह आतीं।
अब जनि कोई ओरहन लोयो नाहिं तो मारन कांती। हमारे गृह आतीं।
किरिया खाय कहौ ये बातैं मम उर नहीं समाती हमारे गृह आतीं।
या से तुम सब शांति चित्त हो समुझायन बहु भांती हमारे गृह आतीं।१५।
कहै मोहाना सखि सब हंसि हंसि निज निज गृह उठि जाती हमारे गृह आतीं।१६।
दोहा:-
प्रेम में हरि के सब सखी सकैं न जसुमति जान।
कहै मोह ना हरि लखैं भीतर बाहेर मान।१।