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६६३ ॥ श्री जगदँबिका कुँवरि जी ॥


पद:-

नित करै मो से रारि माई यह तेरो ललनुवाँ।१।

मैं गृह से दधि बेचन निकसौं चट लकुटी देवै मारि मटकी में

ये तेरो ललनुवाँ।

कबहूँ पकरि पीछे से चट लेवै बैठार प्यारी ये तेरो ललनुवाँ ।

कबहुँ कहै ग्वालनि से घेरि लूटौ दधि झारि सुंदर ये तेरो ललनुवाँ ।

कबहुँ उतारि के साढ़ी आपै लेवै मुख डारि हँसना ये तेरो ललनुवाँ ।५।

कबहूँ खाय औ छिपै बोलै सारी देवै फारि लबरा ये तेरो ललनुवाँ

कबहूँ भिजाय के कपड़ा देवै गलिया में गारि चंचल ये तेरो ललनुवाँ।

मुरली में जादू या के क्या करैं ब्रजनारि तन मन ये तेरो ललनुवाँ ।

जगदम्बिका कुँवरि कहैं प्रेम में सब ब्रजबासी गे हारि धन धन

ये तेरो ालनुवाँ।

मूरति सांवरी वीकी लीन्हो सब उर धारि जग धन ये तेरो ललनुवाँ ।१०।