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६१८ ॥ श्री गान्धारी जी ॥


पद:-

हिंडोला झूलैं श्यामा श्याम।

सखा सखी हिल मिल दे ढारैं जय जय कहि दोउ नाम।

वृक्ष कदम्ब हिंडोला सोहत यमुना तट सुख धाम।

छबि श्रृंगार छटा की शोभा लखि भागै रति काम।

मुरली फूकि नयन दोऊ मूंदत मन्द हंसत गुण धाम।५।

प्यारी बांहगले में डारे गावैं कजरी आम।

सावन मन भावन है सुहावन लागि झरी हर ठाम।

सखा सखी प्रिय प्रीतम झूला वृक्ष कदम्ब पै आम।

नेको बूंद न आवत नेरै हरि किरपा बसुयाम।

सुर मुनि चढ़े बिमानन ताकैं फेकैं सुमन तमाम।१०।

सतगुरु करो लखौ यह लीला होय सुफल नर चाम।

ध्यान धुनी परकाश दसा लय पाय करो बिश्राम।

अनहद सुनो देव मुनि दर्शैं पाप होंय सब खाम।

नागिन चक्र कमल सब जानो जियति लहौ आराम।

सूरति शब्द क मारग यह है बिन रसना जपु राम।

गन्धारी कह जे नहिं जानैं ते युग युग बदनाम।१६।