५९५ ॥ श्री छोखली जान जी ॥
पद:-
हर दम रं रं रं धुनि होती घट में रेफ़ बिन्दु की यार।
सतगुरु बिना भेद नहिं पैहौ है त्रिगुन से न्यार।
महा मन्त्र यह सत्य जानिये मेटत लिखा लिलार।
सब में पूरन सब से न्यारो जानत जानन हार।
शान्ति दीनता प्रेम सत्यता ले जो उर में धार।५।
सो प्रानी या को गहि लेवै देखै अजब बहार।
चढ़ै अमल रग रोवन निसरै हर शै से झनकार।
ध्यान प्रकाश समाधी होवै जहं मिट जात बिचार।
अनहद सुनैं देव मुनि भेटैं मित्र भाव करि प्यार।
नागिन जगै चक्र सब बेधैं फूलैं कमल निहार।१०।
सिया राम प्रिय श्याम सामने निरखै अजब सिंगार।
कहैं चोखली जान त्यागि तन निज घर जाय सिधार।१२।