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५९१ ॥ श्री छबीली जान जी ॥


पद:-

मनसिज के तन स्थूल को हर ने जारा सूक्षम छोड़ि दिया।

उस सूक्षम ते वह बल धारी जीवन के तन मन मोड़ दिया।

जे ब्रह्म बने नहिं ब्रह्म लखा उनका सारा मद तोड़ दिया।

मुरशिद करिके जे दीन रहे उनको आशिष दै छोड़ि दिया।

धुनि ध्यान प्रकाश समाधी को लय उन रूप सामने ओड़ लिया।५।

यह अजपा सूरति शब्द का है जिन तन मन प्रेम से जोड़ लिया।

सब जियतै में हासिल करिके निज भर्म का भांड़ा फोड़लिया।

तन छोड़ि छबीली कह भाई फिर दुनियां में नहिं गोड़ दिया।८।