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५८६ ॥ श्री रघुनन्दन सिंह जी ॥


पद:-

बनिये राम सिया के नौकर।

सतगुरु करि जप भेद जानि लो गाफ़िल घूमत क्योंकर।

ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि लेहु जियति में सौकर।

माया असुर भागि जाँय तन से जवन कहावत त्योंकर।

मातु पिता सन्मुख छबि छावैं कौन सकै तब भौकर।

अन्त त्यागि तन अचल धाम ले जो मम बिनय को गौंकर।६।