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५७८ ॥ श्री स्वामी प्रेमानन्द जी ॥


पद:-

प्रेम की गति सब से ऊंची प्रेम सतगुरु से करो।

प्रेम से प्रिय श्याम मिलते प्रेम तन मन में भरो।

प्रेम से धुनि ध्यान लय हो प्रेम करि जियतै तरो।

प्रेम से सुर मुनि दर्श दें प्रेम के मग पर परो।

प्रेम बिन धिक चाम नर का प्रेम बिन जन्मो मरो।

प्रेम ही सर्वस्व है तुम प्रेम अग्नी में जरो।६।