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५५३ ॥ श्री बिधु मंगल जी ॥


पद:-

श्री कृष्ण भगवान दयानिधि गोरखपुर सुख छाया है जी।

श्री हनुमान प्रसाद बैश्य से गीता प्रेस खोलवाया है जी।

कल्याण धर्म के ग्रन्थ छपा कर देश विदेश पठाया है जी।

पढ़ि पढ़ि नर नारी बहु सुधरैं धर्म ध्वजा पहराया है जी।

त्याग विराग भीतरी जा में बिरलै कोई लखि पाया है जी।५।

सब देवन में समता जाकी दीनन पर अति दाया है जी।

शान मान को दीन तिलाञ्जुलि संत कृपा जग आया है जी।

या से वृध्द तरुण और बालक सब के मन में भाया है जी।

जो जैसा वैसे दे भोजन धन पट पात्र बँटाया है जी।

ऐसा पुरुष कोई मुश्किल से मिलिहै सत्य सुनाया है जी।१०।

प्रेस भी ऐसा और कहीं पर हमैं नहिं दिखलाया है जी।

बिधु मंगल कहैं पूरन दया क समय आय नकचाया है जी।१२।


दोहा:-

श्री हनुमान प्रसादको श्याम लेयं अपनाय।१।

बिधु मगंल कहैं हम तुम्हैं ठीक दीन लिखवाय।२।