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४९७ ॥ श्री नागाशाह जी ॥


पद:-

पढ़ना सुनना क्या हैं सतगुरु से नाम पाया।

धुनि ध्यान नूर लय में दुनों करम जलाया।

प्रिय श्याम सामने भे अद्भुद छटा को छाया।

सुर मुनि के साथ खेला हंसि हंसि हिये लगाया।

अनहद की तान सुनि सुनी फूला नहीं समाया।

नागा कहैं तजा तन साकेत को सिधाया।६।