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४९५ ॥ श्री वेदीन शाह जी ॥


शेर:-

मूर्खों के वचन सह लो क्योंकि वे अन्धे बहिर।

नाम सुख सतगुरु बिना मिलता नहीं है ति गहिर॥


पद:-

सतगुरु करि मन ठहरावो। षट चक्कर बेधि घुमावो।

सुखमनि पर मौज उड़ावो। हरि रूप सामने छावो।

वेदीन कहैं सुख पावो। पढ़ि सुन क्यों धोका खावो।

निज सूरति शब्द लगावो। सातों फिर कमल खिलावो।

परकाश ध्यान लय पावो। सब लोक घूमि फिर आवो।५।

तन छोड़ि वतन को जावो। फिर जग में नहिं चकरावो।

कुन्डलिनी शक्ति जगावो। सुर मुनि के संग बतलावो।

मम बैन गुनो उर लावो। नाहक में बयस गँवाबो।८।