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४७४ ॥ श्री मोटी माई जी ॥


पद:-

पावो राम नाम की रोटी।

सतगुरु करि जप भेद जानिये कहै तुम्हैं को खोटी।

ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि बाँधौ सातौं चोटी।

श्याम सामने हर दम राजैं प्रिय उनसे कछु छोटी।

सुर मुनि मिलैं सुनौ नित अनहद बांधौ सत्य लंगोटी।५।

माया मृत्यु आय कर जोरैं शिर धर चरनन लोटी।

या से मानो भजो निरन्तर गुनौ जवन हम पोटी।

नर तन पाय चूकि गर जैहौ अन्त चलैं तन सोंटी।

नर्क में यम गण बांटि खांय हंसि तुम्हरे मास की बोटी।

प्राण निकारत में दुख देवैं गहि कै दाबैं घोंटी।१०।

सूरति शब्द लगाय जियति करि देव बन्द दुख टोटी।

तब तौ तन तजि चलौ अचलपुर सब हित कहती मोटी।१२।