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४२७ ॥ श्री कम खर्च शाह जी ॥ (४)


पद:-

गंजीफ़ा शतरंज औ सोरही चौपरि नक्की जुट हरि खेलैं।

संग बलराम सखा सब राजैं निज निज दांव पै करत हुलेलैं।

सुर मुनि नभ ते माल गिरावैं श्री राधे सब के उर मेलैं।

यह झांकी सतगुरु करि देखै ते फिर भव का दुख नहिं झेलै।

ध्यान धुनी परकाश दशा लय पाय कै शुभ औ अशुभ को बेलैं।५।

सुर मुनि मिलैं सुनो घट अनहद निर्भय चलि दरबार में पेलैं।

तन मन प्रेम से सूरति शब्द पै धरि जियतै सब सुक्ख सकेलैं।

सब समाज सन्मुख हों हरि की यह कम खर्च हंसै औ रेलैं।८।