४२७ ॥ श्री कम खर्च शाह जी ॥ (३)
पद:-
क्या घट में गुलजार दरबार लखै कोई सतगुरु का लाल।
अंधे बहिरे मत बनो गँवार भजो तजि सकल बवाल।
लय ध्यान धुनी उजियार सामने प्रिय नन्द लाल।
सब सुर मुनि मिलैं करि प्यार सुनो नित अनहद की ताल।
यह सूरति शब्द का कार करो तन मन दै ख्याल।५।
खुले टेलीफुन का तार जियत हो माला माल।
तब होय न बांको बाल मिटै विधि अच्छर भाल।
कहैं कम खर्च पुकार त्यागि तन होहु अकाल।८।