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४२४ ॥ श्री डबडब शाह जी ॥


पद:-

तन मन दिया सतगुरु को जिसने उसने सब करतल किया।

धुनि ध्यान लय परकाश सन्मुख रूप हरि का छा लिया।

देव मुनि के दर्श हों अनहद सुनै अमृत पिया।

हरि के चरित गाया सुना लखि दीन उर बोया विया।

सब में समता भाव माना जब तलक यहं पर जिया।५।

त्यागि तन निज धाम पहुँचा फिर न जग में पग दिया।

डबडब कहैं मानो सखुन सुमिरो तो हो निर्मल हिया।

है पास में सब धन तुम्हारे द्वैत का परदा सिया।८।