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४२३ ॥ श्री धर्मशाह जी ॥


पद:-

पावन परम पावन परम पावन परम पावन परम।

बनना चहो बनना चहो बनना चहो तो होहु नम।

सतगुरु करो सतगुरु करो सतगुरु करो भागै अधम।

धुनि ध्यान हो धुनि ध्यान हो धुनि ध्यान हो क्या नूर चम।

लय में चलो लय में चलो लय में चलो जहां तुम न हम।५।

सुर मुनि मिलैं सुर मुनि मिलैं सुर मुनि मिलैं हंसि दम बदम।

अनहद सुनो अनहद सुनो अनहद सुनो घट उठत घम।

अमृत पियो अमृत पियो अमृत पियो जो झरत सम।

सन्मुख लखौ सन्मुख लखौ सन्मुख लखौ प्रिय श्याम थम।

जियतै मिटै जियतै मिटै जियतै मिटै सब घोर तम।१०।

निर्भय रहौ निर्भय रहौ निर्भय रहौ तब कवन गम।

तन त्यागि चलि तन त्यागि चलि तन त्यागि चलि निज धाम रम।१२।


शेर:-

धर्म धन जमा करते बढ़े।

वाही जीव नीचे से ऊपर चढ़े॥

धरम शाह कहते धरम है वही।

जो निज तन से सुख सब को देवै सही॥