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३८२ ॥ श्री महाराना प्रताप सिंह जी ॥


चौपाई:-

क्षत्री होकर धर्म न छोड़ै। समर भूमि चल मुख मति मोड़ै।१।

अन्त त्यागि तन हरि पुर जावै। जहां क सुक्ख वरनि को पावै।२।