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३८१ ॥ श्री ठाकुर दुनिया सिंह जी ॥


पद:-

भजन बिन काल अचानक खाय।

सतगुरु करि सुमिरन विधि जानो तब नहिं कुछ करि पाय।

ध्यान परकाश समाधि नाम धुनि सन्मुख परभू छवि छाय।

सुर मुनि आवैं हरि गुण गावैं जय जय कार सुनाय।

अनहद सुनो पियो नित अमृत ताल भरे हहराय।५।

नागिन जगै चक्र सब बेधैं कमलन महक उड़ाय।

सूरति शब्द का मारग यह है जानि लेव सुखदाय।

अन्त त्यागि तन निज पुर बैठो गर्भवास मिट जाय।८।