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३६३ ॥ श्री मुन्दर शाह जी ॥


पद:-

भजु रेफ़ बिन्दु अखण्ड तन मन प्रेम कर दुई अक्षरम।

सतगुरु से जप विधि जान ले भागि जांय सारे तस करम।

शेष लोमस पवन सुत जेहि भजत विधि माहेश्वरम।

शुकदेव सनकादिक गरुड़ औ काक नव योगेश्वरम।

सारद गणेश दिनेश सुर सब रटत ऋषी मुनेश्वरम।५।

धुनि ध्यान लय परकाश हो भटकत हो क्या बन कन्दरम।

अमृत पियो अनहद सुनो बाजत रहत घट अन्दरम।

सुर मुनि मिलैं उर में लिपटि ग्रह हाट बाट औ मन्दिरम।

नागिन जगै चक्कर चलैं फूलैं कमल क्या सुन्दरम।

सन्मुख सदा झांकी लखौ सिया राम रूप विश्वम्भरम।१०।

भूषन वसन छवि चन्द्रिका क्या मुकुट शिर श्रुति कुँडलम।

दिव्य सिंहासन पै आसन दोनो कर में धनु सरम।

अजपा पे सूरति शब्द का जानै ते पीछे नहिं टरम।

जियति सब करतल करै तन त्यागि हो पावन परम।

अनमोल स्वाँसा समय यह करते रहो नित शुभ करम।१५।

दीनता औ शान्ति सत्य न छोड़िये दाया धरम।

इनके बिना सुनि गुनि लिया छूटत नहीं नेकौ भरम।

माया पकड़ लेती न बनना भूल कर हम है बरम।

सेवक व स्वामी भाव कबहूँ कर नही सकता गरम।

नारि नर तरुणाई में साधन करैं तजि कै शरम।२०।

उनके ऊपर हो नहीं सकता कभी कोई वरम।

विश्वास करि जुट जाव अब है चारि ही दिन का चरम।

सब के लिये यह पद कहा कैसा सुलभ औ है नरम।

मुन्दर कहैं हम जा रहे लिखवा दिया सब है मरम।२४।