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३१५ ॥ श्री ठनी जान जी ॥


पद:-

हम तो हर दम हैं निरखती प्रिय श्याम कोमल गात को।

धुनि ध्यान क्या परकाश लय अनहद सुनो दिन रात को।

सुर मुनि मिलैं करि प्यार जैसे कोई अपने भ्रात को।

तन मन लगा सुमिरन करौ छोड़ौ जगत के नात को।

पांचों कि आंच में नाचते सहते हो उनकी लात को।

सतगुरु करो वै दें मिला सब विश्व के पितुमात को।६।