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२५० ॥ श्री जीतनि माई दर्जिन जी ॥


पद:-

अँगरेजी अंगरेज से भाखौ पंजाबी पंजाब से।

हिन्दी में तो यहाँ पै भाखौ सत्य कहौं मैं आप से।

व्योंतत ढील कतरि फिरि सीवत पूरा परै न नाप से।

चारि दिना की यह जिंदगानी धन कमात हैं पाप से।

अन्त समय जम नर्क जाय लै मूंदै लोह के टाप से।५।

चारौं ओर से सूजन कोचैं तड़ फड़ात तब साँव से।

सतगुरु करि जब नाम गहै तब छूटै भव के ताप से।

ध्यान धुनी परकाश दशा लय मिलि लें माई बाप से।

जीतनि कहैं जीति ले बाजी राम नाम की छाप से।

नाहीं तो चकरात फिरैंगे दारुण दुख की दाप से।१०।