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२१८ ॥ श्री सफ़ाई शाह जी ॥


पद:-

भाव सब में मुख्य है जो भाव की गहि लेलता।

भाव से सुमिरन करै प्रभु गोद में नित खेलता।

परकाश धुनि औ ध्यान लय में भाव ही लय पेलता।

भाव ही विधि गति को छेकै फिर न भव में ठेलता।

भाव सतगुरु करिके करिये भाव तन मन मेलता।

कहता सफाई शाह मानुष भाव बिन दुख झेलता।६।