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१७४ ॥ श्री पण्डित गार्गी शरण जी ॥


पद:-

हरि तुम बिन को और सहायक।

कृपा सिन्धु दीनन दुख भंजन तुम समान को लायक।

सुर मुनि नित तुम्हरो यश बरनैं किन्नर यक्ष औ गायक।

माया मृत्यु काल यम गण सब आपै के हैं नायक।

बिन अज्ञा कछु कार्य्य करैं नहिं जे बाजत दुख दायक।

गदा चक्र धनु बाण अस्त्र हैं गरुड़ आप के पायक।६।