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१४६ ॥ श्री स्वामी योगानन्द जी ॥


चौपाई:-

त्यारह त्याग औ ग्यारह भक्ती। सतगुरु बिन को जानै युक्ती।

आठ प्रकार परा की जापा। अजपा चारि प्रकार क थापा।

सप्त ज्ञान विज्ञान हैं चारे। समय पै यह सब जाँय प्रचारे।

अबहीं हुकुम नहीं सरकारी। जानी बूझी बात हमारी।

योगानन्द कहैं मम बानी। पढ़ि सुनि धैर्य्य धरैं सब प्राणी।५।


वार्तिक:-

जड़ समाधि से जीव मोक्ष नहीं पाता है। हमने इस क्रिया को जानकर त्याग किया। यह संकल्प समाधि है। जब प्राण वायु उतरती है तब मन इधर उधर दौड़ने लगता है। इस से आयू बढ़ती है और बहुत सिध्दियां प्राप्त होती हैं। इस समाधि को एक वर्ष लगाने से दश वर्ष की आयू बढ़ जाती है। इस में परमानन्द का अभाव है। जैसे मेढक जमीन में पांच या सात या दस हाथ नीचे जा बैठता है। जब अषाढ़ बरसता है तब निकल कर बाहर आता है। और क्वार तक जीव जन्तु खाकर फिर नीचे चला जाता है और चुपके बैठ जाता है। फिर आठ महीना बैठा रहता है परन्तु मन की मति नहीं सरती। मोक्ष और बन्धन का कारन मन ही है।