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८९ ॥ श्री वद्री सिंह जी ॥


पद:-

तन मन औ प्रेम लगाय भजो हरि जी को।

तब होवैगा अति सुक्ख तुम्हारे जी को।

सुर मुनि जिनको रहे ध्याय सबन सिर टीको।

गावैं जस वेद पुरान नाम जस ठीको।

पावैं क्या ध्यान प्रकाश धुनी लै नीको।५।

सन्मुख हों सीता राम जक्त हो फीको।

सतगुरु करि जियतै लखो बने तो सीको।

तब पावो हर दम स्वाद दूध औ घी को।

बिन भजन किहे यह अमृत कैसे पी को।

तन छूटै आवै जाय जगत के लीको।१०।

अब हीं तो करि करि पाप हंसत औ छींको।

जम पुर में कलपौं सड़ौ हर समय डी को।१२।