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८८ ॥ श्री गुनवन्त सिंह जी ॥


पद:-

व्याख्यान से नाना धर्म बढ़ैं या से प्रानी बहु चेते हैं।

कोई सज्जन जन इस मारग पर जब आकर के पग देते हैं।

तब उठा उठा कर खड़े करैं जैसे बच्चे को सेते हैं।

साधारण भोजन को करते नहिं द्रव्य किसी से लेते हैं।

चट शाला अन्न क्षेत्र खुलवा कोइ धनिक जीव से देते हैं।५।

कोई औषधि कपड़े बँटवा कर दिन रात यही जस लेते हैं।

कोई चलि चलि परचार करैं क्या धर्म कि किस्ती खेते हैं।

गुनवंत कहैं गुरु नाम दियो ते निर्भय मोछैं टेंते हैं।८।