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८६ ॥ श्री वटोरन शाह जी॥


पद:-

रहनी गहनी सहनी होय। सो जग साधू पक्का होय॥

सतगुरु से लै राम को नाम। सुमिरै एक तार वसु जाम॥

धुनी ध्यान लै औ परकाशा। हर दम रूप सामने खासा॥

सुर मुनि दर्शन ठौरे देवैं। जै जै करैं बलैय्या लेवैं॥

अनहद सुनि सुनि तन मन हर्षै। अमी चखै क्या गगन ते वरषै।५।

जागे जहँ कुण्डलिनी माता। षट चक्कर सोधन हों ताता॥

सातौं कमल खिलैं तब प्यारे। तर दिमाग खुशबू के मारे॥

इड़ा पिंगला सुखमन होवै। तब योगी सुख नींद में सोवै॥

कहैं वटोरन जियति वटोरी। सो निज धाम से नाता जोड़ी।९।


सोरठा:-

शान्ति दीनता प्रेम तन मन में भरि लीजिये।

शब्दै नेम औ टेम सूरति ता पर दीजिये।१।