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८५ ॥ श्री चम्मक जान जी॥


पद:-

सारी उमिरिया गंवाई भजन बिन अन्त पकड़ि जम कूटैं राम।१।

सतगुरु किह्यो न तन को तायो पारस धन किमि लूटै राम।२।

मन के कहै पड़े चलि नर्क में निज घर ते भई फूटै राम।३।

चम्मक जान कहैं लव लागै ते भव जाल ते छूटै राम।४।