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२८ ॥ श्री सार्बभौम जी ॥


पद:-

श्याम राधे की छटा हम हर समय लखते रहैं।

ध्यान धुनि परकाश लै अनुपम अमी चखते रहैं।

देव मुनि सब दर्स दें अनहद मधुर सुनते रहैं।

भोग हरि का नित्य पाकर कीरतन करते रहैं।

दीनता औ शान्ति लै कटु वचन सुनि हँसते रहैं।

कहैं सार्वभौम सुनाय नित सतगुरु के पग परते रहैं।६।