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२५ ॥ श्री वली शाह जी ॥


पद:-

वली कहता सखुन मेरा जौन मानै सो सुख पावै।

ढूंढ़ि मुरशिद कदम चूमै कपट की जाल जरि जावै।

ध्यान धुनि नूर लै पाकर देव मुनि संग बतलावै।

सामने श्याम श्यामा की छटा हर वक्त लहरावै।

उसे हर जां में हरिपुर है दीनता प्रेम उर छावै।

एक रस हर समय तन मन छोड़ि तन फिर न जग आवै।६।