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४९८ ॥ श्री दरगाही शाह जी ॥


पद:-

नित नये नये करैं चरित श्याम बृज की छबि न्यारी हो।

सखा सखी हिलि मिलि सब खेलैं संग प्रिय प्यारी हो।

सुर मुनि शक्ती आय के देखैं छबि उर धारी हो।

छकैं युगुल छबि प्रेम में माते बहु नर नारी हो।

नैन चैन से आनँद लूटैं क्या सुख भारी हो।५।

सतगुरु करि तन मन को अर्पै तब जयकारी हो।

ध्यानि समाधि धुनी खुलि जावै घट उजियारी हो।

अनहद नाद सुनो घट बाजै हा हा कारी हो।

श्यामा श्याम लखौ तब हरदम मंगलकारी हो।

सत्य प्रेम पद प्राप्त होय जियतै भव पारी हो।१०।

सूरति शब्द क मारग जानौ चढ़ौ सँभारी हो।

दरगाही कहैं ख्याल यार निशि दिन एक तारी हो।