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४८५ ॥ श्री शहादत खाँ जी ॥


पद:-

कहता सहादत खां जिकिर हरि का करो निशि वार जी।

बातौं से पेट भरैं नहीं मन चाह जकड़ै जार जी।

पाप करने से भरैगा पेट नहि दुखदार जी।

जाय के दोज़ख़ पड़ो रोओगे कल्पों यार जी।

खिदमत करो मुरशिद कि तन मन एक करके प्यार जी।५।

मारग बता देवैं सुगम होवै तुम्है दीदार जी।

रूप सन्मुख रहै तब अनुपम सँवलिया यार जी।

ध्यान धुनि औ नूर लय पाकर के हो भव पार जी।८।