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४८४ ॥ श्री पद्मावती जी ॥


पद:-

पद्मावती कह शब्द पर सूरति लगै बसुयाम की।

धुनी जारी रहै हर दम सुफ़ल हो तब जाम की।

नाम की बिधि जानि कै लखिये छटा प्रिय श्याम की।

परकाश ध्यान समाधि हो शुभ अशुभ कर्म नर बाम की।

देव मुनि खेलैं हँसैं बातैं करैं सुख धाम की।५।

परमात्मा को आत्मा ही जानता नर बाम की।

जियत में यहँ पर तै करै सो अचल पुर आराम की।

सतगुरु शरन पर सीख ले यह बात अपने काम की।८।