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४७२ ॥ श्री निशंकदास जी ॥


दोहा:-

शंकर बिधि शारद सदा गणपति सरस्वति जान।

फणपति देव मुनीश सब करत नाम गुण गान।१।

तन मन ते रहते मगन सब पर हरि किरपाल।

निशंक दास कहे दरस दे करते सबै निहाल।२।