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४७१ ॥ श्री ज्ञानेश्वर जी ॥


पद:-

दुइ दल कमल बास सा स्वर है, रे नासा पर जनो।

षोड़श दल में गा है राजत, मा द्वादश दल मानो।१।

पा को बास अष्ट दल में है, धा षट दल में जानो।

नी को बास चार दल में हैं सातों स्वर ये मानो।२।

गान बजान से गती न होवै बैकुण्ठै तक जानो।

ज्ञानेश्वर कहैं नाम तान बिन बिरथा जीवन मानो।३।