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४६७ ॥ श्री लोटनी देवी जी ॥


दोहा:-

तन मन प्रेम लगाइकै सुमिरै धुनि खुलि जाय।

राम सिया सन्मुख सदा देखत ही बनि आय।१।

ध्यान समाधि प्रकाश हो जियतै मुक्ति औ भक्ति।

लोटनी कहैं सुनाय सुत, जपै बढ़ै अति शक्ति।२।