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४५१ ॥ श्री हरदेव दास जी ॥


पद:-

सिय राम की अद्भुत छटा जिस दास सन्मुख छाई है।

सो ध्यान धुनि परकाश लय भक्ती के पद को पाइहै।

जियतै में मुक्ती हो गई तन मन न हर्ष समाइहै।

जब तक रहै जग में लखै लीला मगन गुन गाइहै।

तारैं अधम से अधम पापिन द्वैत भाव मिटाइहै।५।

फिरि अन्त में साकेत को चढ़ि कै सिंहासन जाइ है।

यह पद उसी को प्राप्त हो जो दीनता उर लाइहै।

हर देव कह यह भेद सतगुरु बिन न कोई पाइहै।८।