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४४० ॥ श्री श्याम मनोहर दास जी ॥


दोहा:-

छंद प्रबन्ध को कवि रचे कोविद अच्छर छेद।

प्रेम भाव करि भक्त जन कछु पावैं हरि भेद।१।

निश्चय नेह लगी रहै जिमि चातक औ मीन।

सोई साँचा भक्त है रहै सदा लवलीन।२।

हरदम निरखै राम सिय नाम कि धुनि ले जान।

अन्त समय साकेत को जावै बैठि बिमान।३।

श्याम मनोहर दास कह भजै नाम ह्वै दीन।

पार होय संसार से, सोई परम प्रवीन।४।