३८१ ॥ श्री राम अधार जी ॥
(अवध वासी)
दोहा:-
तन मन प्रेम लगाय कै, सन्मुख धरि हरि चित्र।
थोड़े ही दिन में प्रगट, ह्वै कर करैं चरित्र।१।
पठय देंय हरि धाम तेहि, जो या बिधि को जान।
राम अधार कहैं सुनो, मानो बचन प्रमान।२।
(अवध वासी)
दोहा:-
तन मन प्रेम लगाय कै, सन्मुख धरि हरि चित्र।
थोड़े ही दिन में प्रगट, ह्वै कर करैं चरित्र।१।
पठय देंय हरि धाम तेहि, जो या बिधि को जान।
राम अधार कहैं सुनो, मानो बचन प्रमान।२।