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३७८ ॥ श्री विन्ध्या दास जी ॥

(अवध वासी)

 

 चौपाई:-

हरि सुमिरन हरि सेवा कीन्हा। अन्त समय हरि पुर हम लीन्हा।१।

विन्ध्या दास कहैं हरषाई। सुमिरन सेवा है सुखदाई।२।