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२७१ ॥ श्री चन्द्र रानी जी ॥


पद:-

सुरति सोहागिन साजु सिंगरवा अब तोहि सइयाँ घर चलना होगा।

प्रेम की सारी विवेक क घँघरा फूँद विश्वास लगाना होगा।

मन की चोली बाजू जुगुति योग तप की माँग बनाना होगा।

शान्ति के सेंदुर शील की कंघी सत्य फुलेल चढ़ाना होगा।

शौक क काजर आर्त की नथिया धर्म्म कि मिस्सी मलना होगा।५।

कर्म्म की चूड़ी दाया कि दुलरी श्रद्धा कि बेंदी लगाना होगा।

सन्तोष छिमा के बीरै झुमका किंकिणि धैर्य्य कि बँधना होगा।

सहन के पायल गहन के कड़वा रहन के छड़वा पहिरना होगा।

हर्ष के छल्ला ध्यान कि अरसी पुरुषार्थ कि सीढ़ी पै चढ़ना होगा।

शब्द कि ताली लैकर प्यारी ताला बज्र क खोलना होगा।१०।

गगन महल में अनहद बाजै मधुर मधुर धुनि सुनना होगा।

नाना भांति कि लीला सुरमुनि करते लखि हर्षाना होगा।

शून्य महल में चलि फिरि प्यारी सुधि बुधि सबै भुलाना होगा।

चेति क महा शून्य करि बेधन श्री गोलोक में जाना होगा।

श्याम के अन्तर श्यामा राजैं झूला लखि सुख पाना होगा।१५।

आगे चलि साकेत पुरी में महा प्रकाश समाना होगा।

ताके मध्य पुरुष अविनाशी शक्ति हृदय में लखना होगा।

राम श्याम के रंग रूप के भक्तन लखि मुद भरना होगा।

सतगुरु ने सब भेद बतायो अब चलि पता लगाना होगा।

चँद्ररानी कहैं लौटि के नैहर अब फिरि मोहिं न आना होगा।२०।