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२७० ॥ श्री देवी दास जी ॥


दोहा:-

राम नाम जाने बिना पद न मिलै कैवल्य।

देवी दास कहैं जना, कर उपाय भल भल्य॥


चौपाई:-

नाम बिना जाने मन भोगी। जर्जर तन करि दीन्हेव रोगी॥

बिषय बासनन के संग नाचै। पावत जूठे तहाँ तमाचे॥

सतगुरु कृपा सुधरि जब जावै। तब हरि हीरा पासै पावै॥

सूरति के संग शब्द में लागै। धुनि खुलि जाय रूप रस पागै॥

ध्यान समाधी औ बहु लीला। जानै तब मन होय रसीला॥

तब मन संगिन और न जाई। अधम समुझि गाहैं सब भाई।६।


दोहा:-

साथी अगणित जन्म के कपटी चोर चलाक।

संसकार संयोग जब, मिल्यो भयो बेबाक॥


सोरठा:-

या बिधि सबै हटाय मन, तन मन ते अति मगन।

जानै कोइ कोइ भाय, मन हू के है तन व मन॥