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२६५ ॥ श्री जानकी दास जी ॥

जारी........

तारा गन सूरज चन्द्र दृगन छबि प्यारी।

दोउ भौवन भैरव बीर भद्र बल धारी।

मस्तक पर हैं हनुमान गदा कर धारी।

श्री काली दुर्गा नाशा पर असवारी।

शिर के अन्दर में राम जानकी प्यारी।

संग भरथ शत्रुहन लखन लाल गुणकारी।१६०।

वंशीधर राधे संग छटा छबि न्यारी।

सरस्वती बिराजैं कण्ठ में बीणाधारी।

हिरदय में राजत रमा बिष्णु सुखकारी।

अट्ठासी सहस्त्र ऋषि बसते उदर मँझारी।

ग्रह राशि नक्षत्र महूर्त योग तिथि सारी।

ब्रह्मा जी शक्ति समेत पीठि असवारी।

नवयोगेश्वर बायें कोहान सवारी।

शुकदेव और सनकादिक दहिनी पारी।

हैं मूत्र में राजत सब तीरथ सुखकारी।

औ थनन में सातौं सागर सरिता झारी।१७०।

बन पर्बत कस्बा ग्राम पुरी पग चारी।

कमठ शेष बाराह श्वेत गज चारी।

ये पूँछ में करते बास महीं को धारी।

मुद मंगल तन गो माता जग हित धारी।

सब रोवन में सुर बास करत बलि हारी।

सब सुक्ख जियत में देंय अन्त हितकारी।

पग रक्षा के हित चाम देंय महतारी।

तृण भोजन नित प्रति करैं पियैं फिर बारी।

सब जीव मात्र में राम रमे सुखकारी।

सुमिरन की बिधि जो जानै वही निहारी।१८०।

यह राम नाम सरनाम अटल युग चारी।

सुर मुनि जपते निशि बासर तन मन वारी।

है सर्व लोक में बिदित जपैं नर नारी।

याही से ध्यान समाधि होत सुख भारी।

लीला औ धाम क खेल नाम उर जारी।

नामैं में पालन परलय उत्पति सारी।

मिलिहै जब नाम कि धुनी मधुर सुर प्यारी।

सन्मुख हों सीता सहित राम धनुधारी।

परकाश चहूँ दिशि रहै मण्डला कारी।

ता के भीतर क्या झांकी बाँकी प्यारी।१९०।

लै सतगुरु से उपदेश चोर सब मारी।

ह्वै जावो निर्भय फिरि को सकै बिगारी।

जियतै करतल करि लेव दीनता धारी।

है शान्ति केर तलवार बड़ी बलकारी।

हैं सब में सब से न्यार अमर अबिकारी।

नहि राखै तन में शत्रु सबन संहारी।

सब सुर मुनि दर्शन देंय दिब्य तनु धारी।

बोलैं मधुरे क्या बैन प्रेम बर्षारी।

यह बिनय जानकी दास की जो उर धारी।

ता की इच्छा सब पूरैं अजिर बिहारी।२००।