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२६१ ॥ श्री मनसा राम जी ॥


पद:-

गुरु पद पंकज पराग अनुराग बिन कपट कटारी नहिं उर से निकरिहैं।

द्वैत भाव छूटै नहीं भर्म भाड़ा फूटै नहीं बचन प्रतीति बिन

भव किमि तरिहैं।

मानुष क तन पाय हरि को न जान्यो हाय रोये न चुकैगो

जब नर्क जाय परिहौ।

जप बिधि जान लीजै ध्यान औ समाधि कीजै नाम रूप जाने बिना

मन ना ठहरिहै।

ब्रह्म सर्व व्यापक अकाल सब भाषत है ताको बिन जाने सारी बासना न मरिहै।५।

सर्व शक्तिमान के अनन्त रूप नाम धाम बिना अवतार जक्त कार्य्य कैसे सरिहै।

पढ़ि सुनि गाय भजि दुष्ट संग देहैं तज धर्म्म को प्रचार करि तारिहैं औ तरिहैं।

लीला में आनन्द बढ़ी प्रेम रंग अंग चढ़ी सुर मुनि ध्यान माहिं करत औ करिहैं।

वाक्य ज्ञान छोड़ि भाय तन मन प्रेम लाय जियति निरखि मुद मंगल में भरिहैं।

सीताराम राधेश्याम रमा विष्णु शिवा शिव ब्रह्मा शारदा जी सुर मुनि कृपा करिहै।१०।

सब में रमें है जौन समुहे खड़े हैं तौन बिना सत्संग

यहि मार्ग कैसे परिहै।

मनसा राम बैन कहैं निष्काम जे नर हैं मुक्ति भक्ति पोवैं कैसे नाम जे बिसारिहैं।१२।


दोहा:-

राम नाम रस गारि कै पीवै जो जग आय।

मनसा राम कहैं वही निर्भय हरि ढिग जाय॥