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२६० ॥ ख्याली राम जी ॥

पदः- क्या झाँकी है वाँकी सुघर नट की।

शिर पर क्रीट श्रवण दोउ कुण्डल गालन पर काली जुलुफ़ लटकी।

भाल विशाल तिलक केशर को नाक में नाशा मणि लटकी।

लोचन कञ्ज कमान सी भौहैं अधर लाल मुख द्युति छिटकी।

दोउ कर मुरली अधर धरे हैं त्रिभुवन की छबि तँह अटकी।५।

 

भूषन बसन बनै बस देखत कछनी काछै पीत पट की।

तिरछा चरण दोउन में नूपुर निरखि के सुर मुनि सुधि भटकी।

बाम भाग में राधे राजैं लखि रति काम गये सटकी।

शेष सहस मुख जीह सहस दुइ क्या बरनै गति मति झिटकी।

उत्पति पालन परलय करतल भृकुटी अपन जहाँ मटकी।१०।

 

दरशन की सौभाग्य होय जेहि सो निर्भय फिरि को हटकी।

नाम खुलै हर दम धुनि होवै सो भव सिन्धु जाय तड़की।

नर तन का फल प्राप्त जियति हो भर्म कि फूटि जाय मेटुकी।

पूरन ब्रह्मा सगुन भक्तन हित सन्मुख निरखै छबि टट की।

तन मन प्रेम लगाय दीन ह्वै करु सतगुरु उघरै खिड़की।१५।

 

ध्यान समाधि देव मुनि दरशैं शिर पर अनहद धुनि चटकी।

यह नर देह सुरन को दुर्लभ बिनु सुमिरन मग की सिटकी।

शान्ति चित्त स्थिर ह्वै बैठौ दौरि छोड़िकै गिरगिट की।

सूरति शब्द क मारग पकड़ो पहुँचि जाव बजतै चुटकी।

एक एक रोवां में हरि के अगणित ब्रह्माण्डन पोटकी।२०।

 

श्वांस में अगणित आवैं जावैं जानत हैं सब घट घट की।

कबहूँ दुख न देंय किसी को आप सहैं सब की घुड़की।

मुक्ति भक्ति संगै संग डोलै गर्भ में फेरि नहि फटकी।

ख्याली राम कहैं हरि सुमिरो नहि तो मृत्यु आय गटकी।२४।