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२५७ ॥ श्री साकेत जी ॥


दोहा:-

राम कृष्ण औ बिष्णु को, भजै जौन निष्काम।

सो आवै आवरण मम, हरि दें अचल मुकाम॥


चौपाई:-

हरि सब को निज रूप बनावैं। बिबिधि भांति यानन बैठावैं।१

इच्छा सब की पूरन जानो। मुख नहि खुलै सत्य कह मानो।२।

नाम मोर साकेत कहावै। सुर मुनि बेद शास्त्र बतलावै।३।