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२५६ ॥ श्री गोलोक जी ॥


दोहा:-

कृष्ण क प्रेमी जौन कोइ हों जग में निष्काम।

ते आवैं मम आवरण उनको करूँ प्रणाम।१।

पठय देंव साकेत को एक रस बैठै जाय।

नाम मोर गोलोक है सत्य कहौ हर्षाय।२।