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२५० ॥ श्री महिषासुर जी ॥


चौपाई:-

महिषा सुर है नाम हमारा। देवन को दुख दीन करारा॥

हारे हम से सब सुर भाई। तब प्रगटीं श्री दुर्गा माई॥

रमा उमा शारद से जानो। त्रै अंशन को समि करि मानो॥

प्रगट भईं या बिधि ते माता। जो सब जक्त माहि बिख्याता॥

मारि मोहिं दुर्गा महरानी। पठ्यो श्री हरि की रजधानी॥

तन मन प्रेम लगाय के ध्यावै। सो परलोक लोक सुख पावै।६।